दिल्ली के तिलक नगर में रविवार शाम जिस तरह भीड़ भरी सड़क पर एक बाइक सवार
लड़के ने एक डीयू स्टूडेंट के साथ छेड़छाड़ की, उसे अश्लील इशारे किए और
शिकायत की चेतावनी दिए जाने पर 'जो कर सकती है कर ले, बाद में देखियो मैं
क्या करता हूं' की जवाबी धमकी दी, वह राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर महिला
सुरक्षा के हालात की जीती-जागती तस्वीर पेश कर देता है।
दोस्तों-रिश्तेदारों के दुख-सुख में शामिल होना फिजूल समझते हैं, लेकिन यू-ट्यूब पर अपना ही वीडियो देखने में घंटों गुजार देते हैं। सोशल मीडिया पर अपने कॉमेंट में हम चाहे जितना भी आदर्श बघार लें, मगर हमारी गतिविधियों का ब्योरा कम से कम खुद की नजरों में तो हमारी पोल खोल ही देता है। अपनी अलग-अलग मुद्राओं वाली सेल्फियां और अपने परिवार की छोटी से छोटी उपलब्धि का बखान यह बताने के लिए काफी है कि हमारा नजरिया किस कदर स्वकेंद्रित होता जा रहा है। ये कमियां सोशल मीडिया की नहीं, हमारे समय और समाज की हैं। अगर हम इनसे उबर सके तो शायद सोशल मीडिया का भी कहीं बेहतर इस्तेमाल कर सकें।
यह वर्ग देख रहा है कि पिछले कुछ वर्षों में जाट जैसी संपन्न और दबंग जाति ने राजनीतिक नेतृत्व पर दबाव डालकर अपने लिए आरक्षण हासिल कर लिया- भले ही एक अदालती फैसले ने बाद में उसे इस सुविधा से वंचित कर दिया हो। पिछले कुछ समय से लगातार यह देखा जा रहा है कि सामाजिक दृष्टि से संपन्न और विकसित जातियों ने भी अपने लिए आरक्षण की मांग उठानी शुरू कर दी है। संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसलिए किया गया था कि सामाजिक विकास की प्रक्रिया में पीछे छूट गए तबकों के लिए 'अवसरों की समानता' सुनिश्चित की जा सके।
सदियों से उपेक्षित वर्ग के लोग जब सरकारी नौकरियों में या समाज के अन्य प्रतिष्ठित क्षेत्रों में प्रवेश पाएंगे तो उनकी सामाजिक हैसियत बदलेगी और उनके पूरे समुदाय को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। लेकिन समय बीतने के साथ आरक्षण राजनीति का औजार बनकर रह गया है। राजनीतिक पार्टियों को जब जिस जाति के सहयोग की जरूरत पड़ी, उसको उन्होंने रिजर्वेशन का झुनझुना थमा दिया। इससे बाकी जाति समूहों की महत्वाकांक्षाएं भी जाग उठीं और उनके छुटभैया नेताओं ने भी इसे सौदेबाजी का जरिया बना लिया।
बिल्कुल संभव है कि आरक्षण की मांग के जरिए पटेल समुदाय की नई पीढ़ी सत्तासुख भोग रहे अपनी जाति के नेताओं को ही किनारे लगाना चाहती हो। गुजरात की राजनीति में पटेलों का प्रभुत्व हमेशा से रहा है। नरेंद्र मोदी ने एक तरफ स्थापित पटेल नेताओं को चुनौती दी, दूसरी तरफ इस समुदाय के अपेक्षाकृत नए नेताओं को आगे भी बढ़ाया। राज्य की मौजूदा बीजेपी सरकार में आधा दर्जन मंत्री पटेल समुदाय से ही हैं। संभव है, राज्य की राजनीतिक कमान पूरी तरह मोदी के हाथ में चले जाने से पटेलों में असुरक्षा बढ़ी हो और वे इस आंदोलन के जरिए मोदी को अपनी ताकत का अहसास कराना चाहते हों।
इस मामले में कोई अच्छी बात है तो यही कि लड़की ने पूरी बहादुरी से उस
लड़के का सामना किया, उसकी तस्वीर और बाइक नंबर के साथ पूरी घटना का ब्योरा
फेसबुक पर डाला। सोशल मीडिया पर इस पोस्ट को जबर्दस्त लाइक्स और शेयर
मिले। नतीजा यह कि दिल्ली पुलिस ने घटना का संज्ञान लिया और लड़की द्वारा
शिकायत दर्ज कराने के बाद लड़के को गिरफ्तार भी कर लिया गया। लेकिन लाइक्स
से पहले की कहानी का एक पक्ष यह भी है कि उस चौराहे पर घटना के समय 20 से
ज्यादा लोग मौजूद थे, ट्रैफिक सिग्नल रेड होने की वजह से वे सब लड़के की
हरकतें और लड़की का विरोध देख रहे थे, मगर किसी ने लड़की के पक्ष में बोलने
की जरूरत महसूस नहीं की।
इस तरह यह घटना हमारे मौजूदा समाज की
विसंगतियों का आईना बन कर उभरी है। रियल वर्ल्ड में एक समाज के तौर पर हम
जिन-जिन कमजोरियों से ग्रस्त हैं, उन सबकी भरपाई वर्चुअल वर्ल्ड में करते
हैं और इसे पर्याप्त मानकर गौरवान्वित भी होते हैं। पड़ोस में किसी के घर
लूटपाट हो जाए तो हम नींद का बहाना किए पड़े रहते हैं, लेकिन अगले दिन
फेसबुक पर पुलिस की भर्त्सना करने में कोई कमी नहीं छोड़ते। दोस्तों-रिश्तेदारों के दुख-सुख में शामिल होना फिजूल समझते हैं, लेकिन यू-ट्यूब पर अपना ही वीडियो देखने में घंटों गुजार देते हैं। सोशल मीडिया पर अपने कॉमेंट में हम चाहे जितना भी आदर्श बघार लें, मगर हमारी गतिविधियों का ब्योरा कम से कम खुद की नजरों में तो हमारी पोल खोल ही देता है। अपनी अलग-अलग मुद्राओं वाली सेल्फियां और अपने परिवार की छोटी से छोटी उपलब्धि का बखान यह बताने के लिए काफी है कि हमारा नजरिया किस कदर स्वकेंद्रित होता जा रहा है। ये कमियां सोशल मीडिया की नहीं, हमारे समय और समाज की हैं। अगर हम इनसे उबर सके तो शायद सोशल मीडिया का भी कहीं बेहतर इस्तेमाल कर सकें।
गुजरात में पटेल समुदाय ने अपने लिए आरक्षण की मांग कर सबको चौंका दिया
है। युवा नेता हार्दिक पटेल की अगुआई में इसके लिए चल रहे जबर्दस्त आंदोलन
से जाहिर है कि यह समुदाय रिजर्वेशन को लेकर कितना गंभीर है।
गुजरात में पटेलों को वहां के सबसे संपन्न तबकों में गिना जाता है। हीरे और
टेक्सटाइल के कारोबार में उनकी बहुतायत है। रियल एस्टेट, मूंगफली तेल के
कारोबार और एजुकेशन ट्रस्टों में भी उनका वर्चस्व है। ज्यादातर भूमिपति और
अमीर किसान भी इसी समुदाय से आते हैं। अचानक उन्हें अपने लिए रिजर्वेशन की
जरूरत क्यों महसूस हुई, यह विचार का विषय है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस
समुदाय के भीतर भी असमानता बढ़ी हो और एक तबके को रोजी-रोटी के लिए नौकरी
ही एकमात्र विकल्प नजर आने लगा हो और उसे लगता हो कि आरक्षण से उसका रास्ता
आसान हो जाएगा? यह वर्ग देख रहा है कि पिछले कुछ वर्षों में जाट जैसी संपन्न और दबंग जाति ने राजनीतिक नेतृत्व पर दबाव डालकर अपने लिए आरक्षण हासिल कर लिया- भले ही एक अदालती फैसले ने बाद में उसे इस सुविधा से वंचित कर दिया हो। पिछले कुछ समय से लगातार यह देखा जा रहा है कि सामाजिक दृष्टि से संपन्न और विकसित जातियों ने भी अपने लिए आरक्षण की मांग उठानी शुरू कर दी है। संविधान में आरक्षण का प्रावधान इसलिए किया गया था कि सामाजिक विकास की प्रक्रिया में पीछे छूट गए तबकों के लिए 'अवसरों की समानता' सुनिश्चित की जा सके।
सदियों से उपेक्षित वर्ग के लोग जब सरकारी नौकरियों में या समाज के अन्य प्रतिष्ठित क्षेत्रों में प्रवेश पाएंगे तो उनकी सामाजिक हैसियत बदलेगी और उनके पूरे समुदाय को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। लेकिन समय बीतने के साथ आरक्षण राजनीति का औजार बनकर रह गया है। राजनीतिक पार्टियों को जब जिस जाति के सहयोग की जरूरत पड़ी, उसको उन्होंने रिजर्वेशन का झुनझुना थमा दिया। इससे बाकी जाति समूहों की महत्वाकांक्षाएं भी जाग उठीं और उनके छुटभैया नेताओं ने भी इसे सौदेबाजी का जरिया बना लिया।
बिल्कुल संभव है कि आरक्षण की मांग के जरिए पटेल समुदाय की नई पीढ़ी सत्तासुख भोग रहे अपनी जाति के नेताओं को ही किनारे लगाना चाहती हो। गुजरात की राजनीति में पटेलों का प्रभुत्व हमेशा से रहा है। नरेंद्र मोदी ने एक तरफ स्थापित पटेल नेताओं को चुनौती दी, दूसरी तरफ इस समुदाय के अपेक्षाकृत नए नेताओं को आगे भी बढ़ाया। राज्य की मौजूदा बीजेपी सरकार में आधा दर्जन मंत्री पटेल समुदाय से ही हैं। संभव है, राज्य की राजनीतिक कमान पूरी तरह मोदी के हाथ में चले जाने से पटेलों में असुरक्षा बढ़ी हो और वे इस आंदोलन के जरिए मोदी को अपनी ताकत का अहसास कराना चाहते हों।
जो भी हो, देश में सबसे अच्छी विकास दर वाले इस राज्य में कोई भी अशांति
सभी के लिए बुरी खबर जैसी ही है। अच्छा होगा कि गुजरात सरकार बातचीत के
जरिए कोई रास्ता निकाले और पटेल युवाओं के इस आंदोलन को और ज्यादा न भड़कने
दे।
आरक्षण भारतीय समाज का कोढ़ बन चुका है| आजादी के बाद हमारे महान पूर्व
पुरुषों के प्रयास से भले ही भारत एकताबद्ध राष्ट्र के रूप में
अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर उभड़ा, परंतु बाद के सत्ता पर काबिज अदूरदर्शी
नेताओं ने हमारे समाज और अन्ततोगत्वा राष्ट्र को खण्ड-खण्ड में बांटने का
घिनौना खेल खेला|हमारे संविधान निर्माताओं ने सदियों से उपेक्षित-प्रताडित
हांसिये पर स्थित वर्गों को राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करने के लिये
शिक्षा तथा नौकरी में अस्थायी आरक्षण की सुविधा दी | आरक्षण देते समय उनकी
मंशा थी कि कुछ समय बाद जब स्थिति में सुधार होगा, तो आरक्षण की व्यवस्था
समाप्त कर दी जायेगी| कुछ सुधार भी हुआ, पर अपेक्षित परिणाम नहीं मिला|
इसका एक कारण यह भी था कि जो लोग आरक्षण का लाभ लेकर मुख्य धारा से जुड़े,
उन्होने भी कमोवेश अपने वर्ग के लोगों को उसी हिकारत् की नजर से देखा जिससे
सदियों से अन्य लोग देखते आये थे| इसप्रकार आरक्षण की नीति ने उन
दलित-उपेक्षितों के सामने एक "नव-शोषक" वर्ग खड़ा कर दिया| नतीजतन संविधान
निर्माताओं की अपेक्षा-आकांक्षा के बावजूद आरक्षण खत्म करने की स्थिति तो
नहीं बनी, उल्टे यह पिछले 6 दशक से चलता रहा|
आज हमारी राजनीतिक व्यवस्था में आरक्षण एक सामान्य स्थिति बन चुकी है| कुछ संकीर्ण मानसिकता वाले अदूरदर्शी सत्तासीन राजनेताओं और दलों ने आरक्षण प्राप्त वर्गों का वोट-बैंक के रूप मे इश्तेमाल कर अपनी सत्ता बनाये रखने और फिर से सत्ता हथियाने के छुद्र तत्कालिक लोभ मे इसको जारी रखा| कई ने तो अपने निहित तत्कालिक लाभ के लिये इसका विस्तार करने से भी परहेज नहीं किया| कई लोगों ने तो सत्ता का सूत्र हाथ से छूटता देख समाज को बांटने का अदूरदर्शी कदम जाते-जाते उठाने में भी गुरेज नहीं किया|
अब स्थिति यह है कि समाज का नया-नया वर्ग आरक्षण की मांग कर रहा है- जो सक्षम हैं वह भी| वे हिंसात्मक आन्दोलन तोड-फोड़, आगजनी जैसी अराजक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं|कुछ लोग तो नक्सलवाद जैसे आतंकी घटनाओं के जन्म लेने का भय भी खुलेआम अपने भाषणों में देते सुने जाते हैं|विडंबना यह कि कुछ राजनेता जो अपने को सामाजिक एकता और राष्ट्रीयता के हिमायती होनें का दावा करते नहीं थकते , वे भी महज कुछ राजनीतिक स्वार्थों और अपने विरोधियों को चुनाव में पटखनी देने के लिये ऐसे विघटनकारी आन्दोलनों को समर्थन दे रहे हैं| ऐसी छोटी मानसिकता वाले नेताओं को, जो मानते हैं कि 'जंग और इश्क मे सब उचित है', आनेवाला वक्त एवं पीढी कभी माफ नहीं करेगी| योग्यता की उपेक्षा समाज को पतन और विध्वंश की ओर ले जायेगा|
देश को जरूरत ऐसे निरपेक्ष एवम् दृढ संकल्प वाले नेतृत्व तथा दल की है जो विघटनकारी शक्ति को पनपने से पहले उखाड फेंके और आरक्षण पर विवेकसम्मत निर्णय ले| समय हाथ से फिसलता जा रहा है| यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब रजवाड़ों में न सही पर जातियों में बंटकर समाज और राष्ट्र खण्ड-खण्ड हो जायेगा| परमात्मा लोगों और रहनुमाओं को सद्बुद्धि दें|
सुमन
आज हमारी राजनीतिक व्यवस्था में आरक्षण एक सामान्य स्थिति बन चुकी है| कुछ संकीर्ण मानसिकता वाले अदूरदर्शी सत्तासीन राजनेताओं और दलों ने आरक्षण प्राप्त वर्गों का वोट-बैंक के रूप मे इश्तेमाल कर अपनी सत्ता बनाये रखने और फिर से सत्ता हथियाने के छुद्र तत्कालिक लोभ मे इसको जारी रखा| कई ने तो अपने निहित तत्कालिक लाभ के लिये इसका विस्तार करने से भी परहेज नहीं किया| कई लोगों ने तो सत्ता का सूत्र हाथ से छूटता देख समाज को बांटने का अदूरदर्शी कदम जाते-जाते उठाने में भी गुरेज नहीं किया|
अब स्थिति यह है कि समाज का नया-नया वर्ग आरक्षण की मांग कर रहा है- जो सक्षम हैं वह भी| वे हिंसात्मक आन्दोलन तोड-फोड़, आगजनी जैसी अराजक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं|कुछ लोग तो नक्सलवाद जैसे आतंकी घटनाओं के जन्म लेने का भय भी खुलेआम अपने भाषणों में देते सुने जाते हैं|विडंबना यह कि कुछ राजनेता जो अपने को सामाजिक एकता और राष्ट्रीयता के हिमायती होनें का दावा करते नहीं थकते , वे भी महज कुछ राजनीतिक स्वार्थों और अपने विरोधियों को चुनाव में पटखनी देने के लिये ऐसे विघटनकारी आन्दोलनों को समर्थन दे रहे हैं| ऐसी छोटी मानसिकता वाले नेताओं को, जो मानते हैं कि 'जंग और इश्क मे सब उचित है', आनेवाला वक्त एवं पीढी कभी माफ नहीं करेगी| योग्यता की उपेक्षा समाज को पतन और विध्वंश की ओर ले जायेगा|
देश को जरूरत ऐसे निरपेक्ष एवम् दृढ संकल्प वाले नेतृत्व तथा दल की है जो विघटनकारी शक्ति को पनपने से पहले उखाड फेंके और आरक्षण पर विवेकसम्मत निर्णय ले| समय हाथ से फिसलता जा रहा है| यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब रजवाड़ों में न सही पर जातियों में बंटकर समाज और राष्ट्र खण्ड-खण्ड हो जायेगा| परमात्मा लोगों और रहनुमाओं को सद्बुद्धि दें|
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गुजरात
में नागपुर की प्रयोगशाला है, उस प्रयोगशाला में पहले व्यापक पैमाने पर
लूटपाट व नरसंहार किया गया था. अब उसी प्रयोगशाला में दो-तीन महीने की कड़ी
मेहनत के बाद पिछड़ों व दलितों के आरक्षण को समाप्त करने के लिए नया प्रयोग
शुरू हुआ है. गुजरात की रैली में जानबूझ कर पुलिस लाठीचार्ज व उसके बाद
भड़काई गयी हिंसा ने अरबों रुपये की परिसंपत्तियों को नष्ट कर दिया तथा
हिंसा करने का जो प्रयोग संघी प्रयोग शाला मुसलमानों के खिलाफ करती आ रही
थी, वह अपनी ताकत को पुन: दिखाने के लिए अमादा थी और दिखाया और जिस तरीके
से गुजरात पुलिस ने लोगों के घरों में घुसकर महिलाओं, बच्चों, पुरुषों को
पीटा तथा संपत्ति को नुकसान पहुँचाया है यही काम पूर्व में मुसलमानों के
खिलाफ गुजरात पुलिस ने किया था. गुजरात पुलिस का चरित्र संघ की प्रयोगशाला
से निर्मित विचारों से ओत-प्रोत होने के कारण उसने जनता को जगह-जगह मारा
पीटा व गोलियां चलाई. इस सब हिंसा और प्रतिहिंसा के बीच संघ आरक्षण को
समाप्त करने का कार्य करना चाहती है. अगर पाटीदार जाति ओबीसी में शामिल हो
जाती है तो गुजरात में पिछड़े वर्ग के आरक्षण का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा.
अगर नहीं हो पाती है तो जैसा हार्दिक पटेल ने कहा है कि पटेल-पाटीदार को
आरक्षण नहीं तो किसी को आरक्षण नहीं होना चाहिए.
संघी हिन्दुवत्व से प्रभावित सवर्ण जाति के कुछ तत्व बराबर आरक्षण की मांग
कर रहे हैं या आरक्षण समाप्त करने की. इस पूरे आन्दोलन को आरएसएस का
वैचारिक समर्थन प्राप्त था, बगैर उसकी मदद के इतना बड़ा आन्दोलन खड़ा करना
हार्दिक पटेल के बस की बात नहीं थी.
संघ के ऊपर
हमेशा एक अवसर को छोड़ कर महाराष्ट्र की चितपावन ब्राह्मण जाति का कब्ज़ा
रहा है और आज भी प्रमुख पदाधिकारीगण चितपावन ब्राह्मण जाति के हैं वह किसी
भी कीमत पर दलितों व पिछड़ों को आरक्षण नहीं देना चाहते हैं. जब देश के
प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू की थी तो
पूरे देश के अन्दर आरएसएस ने एक तूफ़ान खड़ा कर दिया था और मंडल पर कमंडल
लागू करने का कार्य किया था और जब आज कमंडल का ही शासन है तो वह पूरी तरह
से देश को मनुस्मृति के दौर में देश को ले जाना चाहती है और उसमें सवर्ण
जातियों का शासन हो और बाकी जातियां सेवक की भूमिका में हों ऐसा सामाजिक
ढांचा तैयार करने के लिए नागपुर की प्रयोगशाला किसी भी कीमत पर बनाना चाहती
हैं उसी का परिणाम है गुजरात में होने वाली हिंसा और पुलिस द्वारा की जा
रही प्रति हिंसा, जिससे आरक्षण समाप्त करने की बात को आगे ले जाया जा सके.
संघ की प्रयोगशाला का आरक्षण समाप्त करने का नया जादू कितना चल पाता है यह
तो वक्त बताएगा. सुमन
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पटना
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटेल समुदाय के अन्य पिछड़ा वर्ग के
तहत आरक्षण दिए जाने की मांग को वाजिब बताते हुए मंगलवार को कहा कि गुजरात
में यह मांग जोर पकड़ चुकी है तथा उसकी अनदेखी करना किसी के लिए संभव नहीं
है।
यहां आज मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद पत्रकारों के आरक्षण के लिए OBC श्रेणी में शामिल किए जाने की मांग को लेकर गुजरात में पटेल समुदाय के सरकार पर दबाव बनाने की खातिर आज एक बड़ी रैली आयोजित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर नीतीश ने कहा, 'मेरी शुभकामना है और वहां के पाटीदार लोगों की OBC वर्ग में शामिल होनेे की मांग न्यायोचित है और वह उन्हें मिलना चाहिए।'
पटेल समुदाय के गुजरात की BJP सरकार को यह चेतावनी दिए जाने कि अगर उनकी मांग स्वीकार नहीं की गई तो 2017 के चुनावों में उन्हें परिणाम भुगतने होंगे, इस पर नीतीश ने कहा कि अब तक सबका वोट लेते रहे हैं। उनकी मांग पर वहां की सरकार क्या निर्णय लेती है यह देखने वाली बात होगी।
जनगणना के आंकड़े एकत्रित करने के चार साल से अधिक समय बाद आज धर्म आधारित आंकडे जारी किए जाने के बारे में नीतीश ने कहा कि ये तो नियमित जनगणना जो कि पिछली बार 2011 में हुआ था का अंग है और इसमें कोई खास और नई बात नहीं है। यह आम प्रक्रिया है तथा इसका आर्थिक, सामाजिक जातिगत जनगणना से कोई संबंध नहीं है। आज जारी आंकड़े देर से जारी किए गए आंकड़े हैं जो वर्ष 2011 के जनगणना के हैं।
यहां आज मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद पत्रकारों के आरक्षण के लिए OBC श्रेणी में शामिल किए जाने की मांग को लेकर गुजरात में पटेल समुदाय के सरकार पर दबाव बनाने की खातिर आज एक बड़ी रैली आयोजित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर नीतीश ने कहा, 'मेरी शुभकामना है और वहां के पाटीदार लोगों की OBC वर्ग में शामिल होनेे की मांग न्यायोचित है और वह उन्हें मिलना चाहिए।'
उन्होंने कहा कि देश के दूसरे राज्यों में उनके समकक्ष समुदायों को आरक्षण
का लाभ मिल रहा है तो संभवत: इसी सिलसिले में उन्होंने कहा होगा और गुजरात
में यह मांग जोर पकड़ चुकी है तथा उसकी अनदेखी करना किसी के लिए संभव नहीं
है।
पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के संयोजक 22 वर्षीय हार्दिक पटेल
द्वारा उन्हें अपना नेता बताए जाने के बारे में पूछे जाने पर नीतीश ने कहा
कि गुजरात से जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक एक युवा नेता के तौर पर वह
उभर रहे हैं और ऐसी स्थिति में जब उन्हें इतना बड़ा जनसमर्थन है तो हमारी
समझ से इस बारे में गुजरात सरकार को सोचना होगा।पटेल समुदाय के गुजरात की BJP सरकार को यह चेतावनी दिए जाने कि अगर उनकी मांग स्वीकार नहीं की गई तो 2017 के चुनावों में उन्हें परिणाम भुगतने होंगे, इस पर नीतीश ने कहा कि अब तक सबका वोट लेते रहे हैं। उनकी मांग पर वहां की सरकार क्या निर्णय लेती है यह देखने वाली बात होगी।
जनगणना के आंकड़े एकत्रित करने के चार साल से अधिक समय बाद आज धर्म आधारित आंकडे जारी किए जाने के बारे में नीतीश ने कहा कि ये तो नियमित जनगणना जो कि पिछली बार 2011 में हुआ था का अंग है और इसमें कोई खास और नई बात नहीं है। यह आम प्रक्रिया है तथा इसका आर्थिक, सामाजिक जातिगत जनगणना से कोई संबंध नहीं है। आज जारी आंकड़े देर से जारी किए गए आंकड़े हैं जो वर्ष 2011 के जनगणना के हैं।
What to watch for today
Japan presents its inflation report card. Economists expect government data to show a 0.2% fall in core consumer prices for July, the first year-over-year decline since 2013. Inflation had risen by 0.1% in June, but sinking oil price and weak consumer demand are hurting Japan's chances of hitting 2% by Sept. 2016.
Microsoft confronts a looming patent problem. Following the International Trade Commission's April ruling that the software giant infringed on two mobile phone patents owned by InterDigital, it announces a final ruling about banning US imports of Microsoft phones.
Mylan shareholders vote on a hostile takeover of rival drugmaker Perrigo. If more than half of the pharmaceutical company's investors say "yes," Mylan will go directly to Perrigo's shareholders with its $33 billion takeover offer. Only half of Dublin-based Perrigo's shareholders would need to accept to seal the deal.
Day two of the annual global central banker pow wow. Because the famed getaway to Jackson Hole, Wyoming is notably missing Federal Reserve chair Janet Yellen, debates over inflation and interest rates will likely feature fewer hints about the timing of a US rate hike. But it could come soon, given strong US GDP figures.
Brazil announces an ugly quarterly GDP. Analysts expect the numbers to show that Brazil is officially in recession. A massive corruption scandal involving state-run oil company Petroleo Brasileiro SA and declining demand from China, Brazil's largest trading partner, have taken their toll.
While you were sleeping
Austrian authorities found at least 20 migrants' bodies in an abandoned truck. They likely suffocated in a vehicle abandoned on a highway near Austria's border with Hungary. Meanwhile European and Balkan leaders met in Vienna, with Serbia blaming the EU for botching the region's migration crisis.
US stocks surged on strong GDP numbers. The NYSE and Nasdaq surged for a second straight day after second-quarter GDP growth was revised up to 3.7% from 2.3%, and new data showed that jobless claims fell more than expected. Investors may welcome the news, but it also makes a Fed rate hike more likely sooner.
Ukraine reached a deal with its creditors. The embattled country agreed with lenders led by Franklin Templeton and other asset managers to cut repayments on its $18 billion in debt, in what the country’s finance minister called a “win-win” deal. But now Ukraine has to negotiate with Russia, which it owes $3 billion, even as it fights against Russian-backed separatists.
Amazon set aside its gadget dreams. After repeated failures in its attempt to build a smartphone, the online retail giant has decided to retreat. The company recently laid off engineers who were working on the development of the Fire phone at Lab126, its secret development center in Silicon Valley.
Apple announced its next big event. The iPhone maker dispatched invitations for a Sept. 6 gathering in San Francisco’s Bill Graham Civic Auditorium—a 7,000-person venue that augurs ample news. Apple is expected to unveil the iPhone 6S and the iPhone 6S Plus; little is known yet about their bells and whistles.
Quartz obsession interlude
Gwynn Guilford on how everything you've heard about China's stock market crash is wrong. "Chinese investors haven’t been investing based on how the economy is doing, but rather, based on what they think the government will do to prop up the market. The crash, termed “Black Monday,” was more likely a reaction to the central bank’s failure over the weekend to announce a widely expected cut to the bank reserve requirement since previous cuts in February and April had boosted stock prices." Read more here.
Matters of debate
China's slowdown has officially ruined it for everybody. The global economy revolves around the People’s Republic.
Innovators should welcome the coming downturn in start-up funding. The most successful tech companies came from a leaner, meaner (paywall) Silicon Valley.
Surprising discoveries
Young Germans have adopted 'Merkel' as a verb. The German chancellor's surname means "to do nothing."
“Manspreading” and “butt dial” are officially new words. The online Oxford Dictionary also added wine o’clock.
Beijing’s air met pollution standards for the first time ever. Authorities shut down factories to ensure blue skies for a World War II celebration.
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